राज्यसभा से कार्यकाल खत्म होने पर भावुक हुए गुलाम नबी, बोले “मुझे फख्र है कि…”

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संसद में बजट सत्र के दौरान आज माहौल काफी गमगीन रहा। इस बीच देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी अपना भाषण देते वक्त भावुक नजर आए। बता दें कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद गुलाम नबी आज़ाद का कार्यकाल अब समाप्त होने वाला है। ऐसे में उनकी विदाई पर पीएम मोदी भी गमगीन नज़र आए। जब पीएम ने 2006 में श्रीनगर आतंकी हमले के बारे में बताया तो सदन ने मौजूद सभी लोगों की आंखें भर आईं।

श्रीनगर आतंकी हमले के बारे में बताते हुए पीएम ने कहा कि “गुलाम नबी जी जब मुख्यमंत्री थे, तो मैं भी एक राज्य का मुख्यमंत्री था। हमारी बहुत गहरी निकटता रही। एक बार गुजरात के कुछ यात्रियों पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया, 8 लोग उसमें मारे गए। सबसे पहले गुलाम नबी जी का मुझे फोन आया। उनके आंसू रुक नहीं रहे थे। उस समय प्रणब मुखर्जी जी रक्षा मंत्री थे। मैंने उनसे कहा कि अगर मृतक शरीरों को लाने के लिए सेना का हवाई जहाज मिल जाए तो उन्होंने कहा कि चिंता मत करिए मैं करता हूं व्यवस्था। लेकिन गुलाम नबी जी उस रात को एयरपोर्ट पर थे, उन्होंने मुझे फोन किया और जैसे अपने परिवार के सदस्य की चिंता करें, वैसी चिंता वो कर रहे थे।”

पीएम मोदी की बातों को सुनकर गुलाम नबी ने भी अपनी बातें रखीं। उन्होंने कहा कि “मैं उन खुशकिस्मत लोगों में हूं जो पाकिस्तान कभी नहीं गए जब मैं पाकिस्तान के बारे में पढ़ता हूं, वहां जो आज हालात हैं। मुझे गर्व और फक्र महसूस होता है कि हम हिंदुस्तानी मुसलमान हैं। आज विश्व में अगर किसी मुसलमान को गर्व होना चाहिए तो वह हिंदुस्तान के मुसलमान को गर्व होना चाहिए।” उन्होंने कहा कि “प्रधानमंत्री ने जिस तरह भावुक होकर मेरे बारे में कुछ शब्द कहे मैं सोच में पड़ गया कि क्या कहूं।”

2006 में श्रीनगर आतंकी हमले को याद कर वह भावुक हो गए। ऐसे में उन्होंने हमले के बाद के हालात बयान किए। उन्होंने कहा कि “हमले के बाद जब मैं एयरपोर्ट पहुंचा तो जो छोटे-छोटे बच्चे थे वहां, जिन्होंने अपने माता-पिता को खोया था, वो मेरी टांगों से लिपट कर रोने लगे। मैं भी रोया। मैं कैसे उनकी लाशों को विदा करने गया था जो कश्मीर घूमने आए थे।” इस बीच सदन में पीएम मोदी ने गुलाम नबी की तारीफ भी की। उन्होंने कहा कि “किसी से भी गुलाम नबी जी से मैच करने में बहुत दिक्कत पड़ेगी क्योंकि गुलाम नबी जी अपने दल की चिंता करते थे, लेकिन देश और सदन की भी उतनी ही चिंता करते थे।”