असम में मुख्यमंत्री पद के भाजपा उम्मीदवार का अतीत एक नया चुनावी मुद्दा बन सकता है

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कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच असम चुनाव में एक नया मुद्दा तेजी से उठ रहा है. भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार सरबानंद सोनोवाल का कथित दागदार अतीत अब यहां अचानक चर्चा में है. पिछले हफ्ते उल्फा के एक धड़े ने दावा किया है कि सोनोवाल असम में दो ‘गुप्त हत्याएं’ करवाने में शामिल रहे हैं.

इस आरोप के बाद से भाजपा कुछ हद तक रक्षात्मक मुद्रा में दिख रही है. पार्टी का कहना है कि उल्फा कांग्रेस की मदद कर रहा था और इन आरोपों से उसे ही फायदा होना है. भाजपा के प्रवक्ता बिजान महाजन कहते हैं, ‘कांग्रेस उल्फा की मदद लेकर झूठ-मूठ के आरोप लगा रही है. मुझे यह ठीक नहीं लगता कि आप उस मुद्दे पर स्पष्टीकरण दें जो एक अंडरग्राउंड संगठन उठा रहा है और जो संविधान के दायरे में रहकर काम नहीं करता.’

जहां तक कांग्रेस की बात है तो वह इस मुद्दे का राजनीतिक फायदा उठाने की बात खारिज कर चुकी है. प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता रितुपर्णो खोंवार कहते हैं, ‘हम इसे कोई मुद्दा नहीं बना रहे हैं, यह लोगों और मीडिया पर निर्भर करता है.’

उल्फा-इंडिपेंडेंट, जिसका नेतृत्व अलगाववादी नेता परेश बरुआ कर रहे हैं, ने पिछले हफ्ते मीडिया में एक वक्तव्य जारी करके सोनोवाल पर आरोप लगाया था कि वे 1997 में चुनाव के ठीक पहले सामाजिक कार्यकर्ता संजॉय घोष की हत्या में शामिल थे. इसके अलावा 1986 में एक छात्र नेता सौरव बोरा की हत्या में भी सोनोवाल का हाथ था. अलगावगादी गुट का दावा है कि इन दोनों हत्याओं में सोनोवाल ने उल्फा की मदद ली थी और कांग्रेस के एक पूर्व नेता हिमंता बिस्वा सर्मा जो फिलहाल भाजपा में शामिल हो चुके हैं, भी इन हत्याओं में सोनोवाल का साथ दिया था.

सोनोवाल ने 2009 के लोकसभा चुनाव के पहले शपथपत्र में जानकारी दी थी कि वे ‘उन अपराधों में आरोपित हैं जिनमें दो या दो से ज्यादा साल की सजा हो सकती है.’ बिजान महाजन जो भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता होने के साथ-साथ वकील भी हैं, बताते हैं कि बाद के सालों में सोनोवाल पर चल रहे मुकदमे खत्म हो गए थे. वे बताते हैं, ‘सीबीआई ने इस मामले में एक रिपोर्ट दाखिल की थी और उसे सोनोवाल के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला था. निचली अदालत में उनके खिलाफ आरोप तय हुए थे लेकिन हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था.’

सोनोवाल 1990 के दशक में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) के सदस्य थे. आसू के बैनर तले उस दौर में एक बड़ा छात्र आंदोलन खड़ा हुआ था और बाद में सोनोवाल संगठन के अध्यक्ष भी बने. इसके बाद वे असम गण परिषद और फिर भाजपा में शामिल हुए.

सौरव बोरा के साथ वे भी डिब्रुगढ़ विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं. सौरव की 1986 में हत्या हो गई थी और 1988 में यह केस सीबीआई को सौंप दिया गया. सोनोवाल इस हत्या के पांच मुख्य आरोपितों में थे.

सामाजिक कार्यकर्ता संजॉय घोष की उस समय हत्या हुई जब वे माजुली में चल रही एक परियोजना से जुड़े थे. ब्रह्मपुत्र का यह नदी sद्वीप सोनोवाल का विधानसभा क्षेत्र है.

इस पूरे विवाद के बीच कांग्रेस उल्फा से किसी भी तरह की मदद लेने से इनकार कर रही है. पार्टी का कहना है कि वह खुद 1990 के दशक में अलगाववादी समूहों के निशाने पर रही है.