‘‘नौटियालजी के निधन से हम सब दुखी हैं,’’प्रार्थना सभा में महामहिम राज्यपाल ने कहा..

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मुंबई। महानगर के दादर स्थित योगी सभागृह में नौटियाल परिवार की ओर से आहूत श्रद्धांजलि सभा में बोलते हुए महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने कहा कि नंदकिशोर नौटियाल के निधन से हम सब दुखी हैं। नंदकिशोर नौटियाल के निधन पर गहरा दुःख प्रगट करते हुए महामहिम राज्यपाल ने कहा कि मुझे यह नहीं लगता था कि मैं महाराष्ट्र आऊंगा तो मुझे नंदकिशोर नौटियाल नहीं मिलेंगे। ऐसी परिस्थिति में बोलना बहुत कठिन होता है।

उन्होंने कहा कि पहाड़ से आकर सागर तट के इस महानगर में विपरीत परिस्थितियों में भी जब कोई व्यक्ति नंदकिशोर नौटियाल बनता है या शैलेश मटियानी बनता है, तब ऐसा लगता है कि यह देश कितना अद्भुत है। महामहिम ने नौटियालजी के साथ अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि चूँकि हम दोनों पहाड़ के हैं और व्यक्तिगत मेल के अलावा वैचारिक एकरूपता के नाते मेरी उनसे अक्सर चर्चा होती थी।

हालाँकि नौटियालजी उम्र में मुझसे बहुत बड़े थे, लेकिन जब भी मेरी उनसे चर्चा होती तो ऐसा जरा भी प्रतीत नहीं होता था कि वे मुंबई में रहते हैं और मैं पहाड़ पर। वे इतनी आत्मीयता से बातें करते थे कि लगता था हम दो नहीं बल्कि एक ही हैं। नवनीत के संपादक विश्वनाथ सचदेव ने कहा कि आदरणीय नौटियालजी का जाना पत्रकारिता, साहित्य और मनुष्यता तीनों क्षेत्रों में एक बहुत बड़ी रिक्तता का आना है।

सचदेवजी ने कहा कि एक पत्रकार की समाज के प्रति उसके उत्तरदायित्वों के बारे में हमने नौटियालजी से ही सीखा। हम लोग नौटियालजी के सानिध्य में ही इस शहर में बड़े हुए। उनसे लगातार सीखते रहे, उनसे लगातार प्रोत्साहन पाते रहे। नौटियालजी ने पत्रकारिता के जो संस्कार हमें दिए वह बहुत बड़ी बात है। विश्वनाथ सचदेव ने पत्रकारिता की भाषा पर नौटियालजी के विचारों को उद्धृत करते हुए कहा कि नौटियालजी ने भाषा के माध्यम से अपने आपको समाज से जोड़ा था।

उनका कहना था कि पत्रकारिता यदि समाज की भाषा में नहीं होगी तो उस पत्रकारिता का कोई औचित्य नहीं है,उसकी कोई उपयोगिता नहीं है। सचदेवजी ने बताया कि पुस्तकों में छपनेवाले साहित्यिक शब्दों को निकालकर पत्रकारिता में आम बोलचाल की भाषा के जो शब्द आज इस्तेमाल हो रहे हैं उनमे से अधिकांशतः शब्द नौटियालजी की देन हैं। विश्वनाथ सचदेव ने नौटियालजी के व्यक्तित्व के बारे में बताते हुए कहा कि मुंबई में नौटियालजी को पत्रकारिता का भीष्म पितामह कहा जाता है, जो कि निश्चित रूप से वे थे।

साथ ही वे एक संवेदनशील साहित्यकार भी थे। उनकी संवेदनशीलता उनके दोनों उपन्यासों में परिलक्षित भी होती है। लेकिन इन सबके बावजूद नौटियालजी एक अच्छे इंसान भी थे। एक महान इंसान जिसने जीवनभर सबका भला ही चाहा और लोगों को सिर्फ दिया ही दिया जो वे दे सकते थे।

नौटियालजी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मिठाईलाल सिंह, अनुराग त्रिपाठी, कन्हैयालाल घ सराफ, बृजमोहन पांडे, भंवरसिंह राजपुरोहित, हरी मृदुल, राजेश्वर उनियाल, मोहन काला आदि ने अपने उदगार व्यक्त किये। जैन तेरापंथ समाज के किशन डागलिया ने आचार्य महाश्रमण जी का संदेश पढ़कर सुनाया।

इस अवसर पर सुबोध शर्मा, कृपाशंकर सिंह, प्रशांत शर्मा, श्रीनारायण अग्रवाल, सुनील गाड़िया, हरकिशन भट्टड़, बृजमोहन पांडे, अनिल गलगली, चंद्रकांत त्रिपाठी, सी जी जोशी, गयाचरण त्रिवेदी, माधवानंद भट्ट, रामनारायण सोमानी, डॉ रामसागर सिंह, जे पी सिंह, शक्तिमान तलवार, डॉ देवेंद्र सक्सेना, कुमुद झवर, उमा भसीन, विमला मोहता, अरविंद तिवारी, शिवजी सिंह, चित्रसेन सिंह, चंद्रकांत जोशी, राजशेखर चावला, सुरेशचंद्र शर्मा, मंजू पांडेय, सी पी टेंभेकर, पिंकी चतुर्वेदी, रमन कुकरेती, सुशील जोशी, मनोज भट्ट, राजू जैन, प्रवीण ठाकुर, स्वामी चंदर जी, जगदीश पुरोहित, गिरेंद्र मित्तल, हर्ष मनराल, राजकुमार चपलोत, डॉ राजेंद्र यादव, प्रीतम सिंह त्यागी, महेंद्रसिंह दसूनी, सुरेश काला और सुधाकर थपलियाल आदि समाज के विभिन्न क्षेत्रों के गणमान्य बड़ी संख्या में उपस्थित थे। इस अवसर पर भजन सम्राट पद्मश्री अनूप जलोटा ने अपने सहयोगियों के साथ नौटियालजी के पसंदीदा भजनों की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन अनिल त्रिवेदी ने किया।